द से दवात द से दर्द
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{
“Tumhen
Yaad Hoga” }
दशहरे वाले
दसवें महीने ने ,
फिर दी है दस्तक
आ रहा है दबे पाँव
दग्ध करती यादों का मौसम
सर्दीला सा मौसम !!
दर्दीला सा मौसम !!
औसारे खड़ी सोचूं मैं ,
मेरे पास नहीं
कोई याद भरा
सपनीला सा मौसम !!
देश में ऋतुकाल
दिन-दर –दिन बदलता है
नहीं बदलता तो बस ,
मेरे सहन की ऊँची दीवारों पर
और द्राक्षलतिकाओं से भरी
मेरी बगिया के दर पर
वक़्त का वो दरवेश !!
जो रोक लेता है
हवाओं पर सवार
मुझ तक आने को व्याकुल ,
मेरे हिस्से का हर संदेश !!
दीवान लिखती है
दुनिया अब भी प्रीत के ,
मिलन ~बिछोह के !!
मैं पढ़ती थी कभी द से दवात
मैं पढ़ती हूँ आज भी
द से दवात द
से दर्द
और सियाह
आखर
एक काली खोह
के !!
©2015“Tumhen Yaad Hoga”Dr.L.K.Sharma.