Thursday 12 May 2016

ऐसे ही आना तुम / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

ऐसे ही आना तुम
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(डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

ऐसे ही आना तुम
चली आती हैं जैसे
सूरज की रश्मियाँ
सोनार दुर्ग की प्राचीर से
करने रोज अठखेलियाँ !

ऐसे ही रुक जाना तुम
जैसे थार के  इस
आखिरी स्टेशन पर
थम जाते हैं रेल के पहिए
वापस मुड़ते हैं
कल फिर लौटने के लिए !

ऐसे गुनगुनाना तुम
जैसे कुलधरा के
किसी उजड़े झरोखे में
कोई नवेली ब्याहता आए !
अपने पिया का ध्यान दूसरी ओर देख
हौले से अपना चूड़ा खनकाए !

ऐसे खिलखिलाना
अपने नम होठों से तुम
जैसे जब कोई मांझी
सहसा सीटी बजाए !
बकुल पांखी का झुण्ड
अपने परों से
गडेसर का जल छलकाते हुए
नीले आसमान में मंडराए !

ऐसे चलना तुम
रेत पर हलके कदमों से
जैसे गोंडावन गुजरे
चाल की सधी हुई लार्जिशें लिए !
रेत के विस्तार में
गुम हुए अपने संगी को
खोजने की ख्वाहिशें लिए !

ऐसे मुस्कुराना तुम
जैसे चटख धूप में
खड़ा अकेला रोहिडा फूले !
और , ये सब
ऐसे याद दिलाना तुम
कि यायावर कोई
अपनी भूली हुई मंजिलों को फिर छूले !!

गोंडावन- एक दुर्लभ चिड़िया , राजस्थान का राज्य पक्षी.
रोहिडा – राजस्थान का राज्य पुष्प
गडेसर – जैसलमेर की एक स्थानीय झील.


……© 2016 ऐसे ही आना तुम” Dr.L.K. SHARMA


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