गौरैया ,
कभी कभी लगता है
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(डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )
(डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )
कभी कभी लगता है
गौरैया ………
पूछूँ तुमसे
किस अनाम देस से आई हो
किस का संदेस लाई हो
आखिर तुम हो कौन
सूखी डाल पर बैठी
इतनी सहज इतनी मौन
कभी कभी लगता है
गौरैया …….
रच डालूँ कुछ नगमात
इस अशांत से वक़्त में
किसी का नाम लेकर
भर दूँ मूर्त –अमूर्त ज़िक्र
अपनी परास्त सी वसीयत में
कभी कभी लगता है
गौरैया ……….
किसी की आँखों के रंग चुरा लूँ
उकेर दूं खाली कैनवास पर
ढेरों चित्र उस की यादो के
उस पुराने घर की दीवारों के
उखड़ते हुए नम प्लास्तर से
फिर भर लाऊँ अक्स टूटे वादों के
कभी कभी लगता है
गौरैया ……….
टुकड़े कर ही डालूँ
वर्जनाओं की चट्टानों के
उन्ही टुकडो से तराश लूँ
एक बुत उस दर्द-फरोश का
उस की पत्थर सी आँखों में
फिर लिखूँ एक नया गीत
उसी आलमे-बेहोश का !!
……© Dr.LK SHARMA
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