Saturday, 27 February 2016

फाग-फाग होरी हो गई / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )


फाग-फाग होरी हो गई  
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(डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

(1)
आज फिर अचानक

थम सी गयीं हवाएं ,

ठिठक गए पत्तों के पांव !

जाग सी उठी घटाएं ,

कुनमुनाई पीपल की छाँव !!


(2)
आज फिर अचानक

सोनजूहीने बरसा दिए,

फूल अंजुरी भर-भर ! 

सरसों के खेत में उड़ते उड़ते,

रुक गए कृष्ण-भ्रमर!!

(3)
आज फिर अचानक

बादलों की ओट से लगा झाँकने

सूरज व्यथित सा !

मेरी गुमसुम सी देह मुस्कुराई

जाग उठा तन वसंत सा !!

(4)
आज फिर अचानक

पलाश के लाल दहकते फूल 

छुपे,सघन हरे पातो में !

जैसे हरी चुनर लपेटती हो तुम

सुर्ख मेंहदी रचे हाथों में !!

(5)
आज फिर अचानक

तुम्हारे आते ही मेरे मन की,

सारी सृष्टि गोरी हो गयी !

तुम्हरे बदन के बसंत से 

नहाई धूप में ,

मेरे बदन की हरेक राग,

फाग-फाग होरी हो गयी !!




……© 2015 “
सुनो अँगारमणिका Dr.L.K. SHARMA



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