फिर से दे मुझे
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(लक्ष्य
“अंदाज़”)
पीले शहर के वो
खुशनुमा मंजर फिर से दे मुझे !!
रेत से भरे नंगे
पांवों के सफर फिर से दे मुझे !!
रक्से सहरा शबे शामियाना
इक और बार बख्श ,
उजड़ी नींद कांपते
कपड़े का दर फिर से दे मुझे !!
किसी सूने गलियारे
में तेरा सट के सिमट जाना ,
धडकते सीने पे मेरी
सहमी नजर फिर से दे मुझे !!
पेड़ तले रुक कर वो
केसरिया बालम गाना मेरा ,
तेरे बदन से उठती इकतारा
लहर फिर से दे मुझे !!
अब मैं उस रेशमी लम्स
की शबनमी पनाह में हूँ ,
अलसाए बदन से फूटी पागल
सहर फिर से दे मुझे !!
थार के आगोश में पनपी
अधूरी कहानी की कसम ,
रोहिडे की डालियों से
लिपटे कमर फिर से दे मुझे !!
तू किसी हवेली के
झरोखे में खुद को छोड़ जाना ,
रब से मांगू मैं उम्र
भर का सफर फिर से दे मुझे !!
कल वो आतिशे बेकसी
जला गई ये बदन सारा ,
गली के मोड़ सा रुक
अपनी ठहर फिर से दे मुझे !!
फाख्ता सी आँखों में
तू सब हादसे समेट ले गया ,
मंज़ूर नहीं सन्नाटे
ला वो बवंडर फिर से दे मुझे !!
“अंदाज़” के दर्द में
दवाई सा सुकून भर दे आकर,
या जो पिया था पहले
वही जहर फिर से दे मुझे !!
……©2016 “ANDAZ-E-BYAAN” LK SHARMA